शनिवार, 25 दिसंबर 2010

नेता बनाम अधिकारी, किसकी ज्यादा जिम्मेदारी?

अपुन के दिमाग में आया कि सत्ता की गाड़ी को दो ही पहिये चलाते हैं, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी। दोनों में से एक के बिना भी सरकार नहीं चल सकती। मगर सवाल ये उठता है कि इनमें से बड़ा कौन? दोनों में कौन ज्यादा जिम्मेदार है?
एक अधिकारी से गुफ्तगू की तो वे बोले असल में सरकार तो अधिकारी और उसके नीचे का तंत्र चलाता है। राजनेता को तो कानून और नियमों की जानकारी तक नहीं होती। वह तो केवल मौखिक आदेश देता है, उनकी अनुपालना नियमों के अंतर्गत किसी प्रकार की जाए, यह रास्ता तो अधिकारी ही निकालता है। वैसे भी यदि नियम के खिलाफ कुछ हो जाए तो राजनेता का कुछ नहीं बिगड़ता, क्यों कि वह तो केवल जुबानी जमा-खर्च करता है, जबकि रिकार्ड के मुताबिक फंदा को अधिकारी और कर्मचारी के गले में ही पड़ता है। अगर प्रशासनिक तंत्र प्रभावी न हो तो राजनेता जो मन में आए, वही करे और इसके नतीजे में अराजकता ही हाथ आ सकती है। कुल मिला कर अधिकारी नकेल का काम करता है और उसी की वजह से सिस्टम चलता है। इस लिहाज से अधिकारी ही बड़ा और जिम्मेदार माना जाना चाहिए, मगर बावजूद इसके उसे दब कर चलना पड़ता है। इस वजह से, क्यों कि राजनेता चाहे जब उसे उठा कर दूर फिंकवा सकता है।
अपुन ने एक राजनेता का मन टटोला। उनका तर्क भी दमदार था। बोले- राजनेता ही बड़ा होता है। असल में सरकार बनी ही जनता के लिए है और जनता का दर्द राजनेता से ज्यादा कौन समझ सकता है। वह जनता में से उठ कर आता है, जनता के बीच ही रहता है और जनता के प्रति ही जवाबदेह होता है। आप ही सोचिये, हो भले ही रेलवे ट्रेक के कर्मचारी की वजह से ट्रेन एक्सीडेंट, मगर छुट्टी तो रेल मंत्री हो जाती है। इतना ही नहीं नेेता को हर पांच साल बाद जनता के सामने परीक्षा देने जाना पड़ता है। विपक्षी तो कपड़े फाड़ता ही है, खुद की पार्टी का भी टांग खींचने में लगा रहता है। जनता भी ऐसी है कि कब और किस वजह से फेल कर दे और कब पास, कुछ पता नहीं होता। दूसरी ओर अधिकारी केवल किताबों को रट कर या फिर टीप-टाप कर एक बार परीक्षा पास कर लेता है और ले-दे कर ऊंचे ओहदे पर पहुंच जाता है। फिर ताजिंदगी ए.सी. चेंबर में ऐश करता है। न तो जनता के पास जाने का झंझंट और न ही जनता से मिलने-मिलाने की परेशानी। दरबान ही नहीं घुसने देता। जनता उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। हद से हद उसका तबादला कर दो। जहां जाएगा, गाड़ी, बंगला, चपरासी, सब कुछ मिलेगा। अब आप ही बताइये, जिसका ज्यादा समर्पण और ज्यादा जवाबदेही है, वही तो ज्यादा जिम्मेदार हुआ।
दोनों की बातें सुन कर अपना तो सिर ही चकरा गया। कौन बड़ा और कौन ज्यादा जिम्मेदार? अपने लिए तो दोनों ही बड़े हैं। हां, अगर दोनों में से कोई भी गलती करे तो अपनी कलम के वार से बच नहीं सकते। और आप जानते हैं कि तलवार के वार से ज्यादा गहरा घाव करता है शब्द बाण। अरे..... आप कहीं ये तो नहीं समझ रहे कि अपुन अपने आप को बड़ा साबित करने लगे हैं। अपुन कितने छोटे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गर किसी नेता से अटके तो कुट जाएंगे और अधिकारी के जंच गई तो वह हमारी रिपोर्ट दर्ज नहीं होने देगा।

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