सोमवार, 20 दिसंबर 2010

गुर्जर आंदोलन : फिर बना सरकार के गले की हड्डी

राजनीतिक दलों की वोट राजनीति के परिणामस्वरूप एक बार फिर गुर्जर समाज का आंदोलन सरकार के गले की हड्डी बनने जा रहा है। एक ओर कोर्ट ने पचास प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा रखी, इस कारण गुर्जरों को अभी अपेक्षित आरक्षण दिया नहीं जा सकता, तो दूसरी ओर लाखों बेरोजगारों के दबाव में लंबे अरसे रुकी पड़ी भर्तियों को करना जरूरी है। हालांकि सरकार ने गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग के तहत एक प्रतिशत आरक्षण दे रखा है और उन्हें ओबीसी के तहत 21 प्रतिशत लाभ भी मिल रहा है, मगर वे पांच प्रतिशत की मांग पर अड़े हुए हैं। यह एक ऐसी गुत्थी है, जिसका कोई समाधान नहीं है।
सरकार की हालत ये है कि वह कुछ भी नहीं कर सकती। यदि वह गुर्जरों के दबाव में एक लाख नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया को रोकती है तो एक ओर बेरोजगारों में रोष भडक़ सकता है, दूसरी ओर जिन दफ्तरों में रिक्त पद हैं, वहां का कामकाज प्रभावित होता है, जिसका सीधा-सीधा नुकसान आम जनता को होगा। आखिर वह कब तक कोर्ट का फैसला आने तक भर्ती को रोक सकती है? रहा कोर्ट का मामला तो उसके हाथ में केवल फैसले का इंतजार करना ही है। हालांकि उसने अपनी ओर से गुर्जरों की पैरवी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक वकील को भी लगाया है, मगर फैसला सरकार के पक्ष में ही आएगा, यह कैसे सुनिश्चित हो सकता है? रही कोर्ट की प्रक्रिया का मसला तो यह उसी पर ही निर्भर है कि वह किन औपचारिकताओं को कितने समय में निपटाता है। उसे बाध्य तो किया नहीं जा सकता है कि निश्चित समय वह फैसला सुनाए। यानि कि सरकार इस वक्त ऐसे दुष्चक्र में फंस गई है, जिससे निकलना बेहद मुश्किल है।
सरकार ही क्यों, आंदोलन अगर तेज होता है तो उसके दुष्चक्र का परिणाम तो आखिरकार आम जनता को ही भुगतना है। लोगों को याद है पिछले गुर्जर आंदोलन के दिन, जब इस प्रदेश में अराजकता का अध्याय लिख दिया गया था। कानून-व्यवस्था, सब कुछ ताक पर रख दिया गया, जिसका परिणाम ये हुआ कि न केवल गुर्जर समाज के अनेक युवक शहीद हुए, अपितु आम जनता ने भी अत्यधिक कष्ठ भोगे। एक बार फिर वह नौबत आ गई दिखती है। गुर्जर समाज अपनी मांग की खातिर अडिग है। उसे तो किसी भी सूरत में समाज के युवाओं के लिए आरक्षण चाहिए। इसके लिए एक गुट ने बांदीकुई इलाके के अरनियां में रेलवे स्टेशन पर महापड़ाव शुरू कर दिया है तो दूसरा गुट रसेरी गांव में सोमवार से ट्रेक जाम करने का ऐलान कर चुका है। जाहिर तौर पर दोनों गुट समाज के सामने अपनी मांग को पूरा करवाने की क्रेडिट लेना चाहते हैं। इसी वजह से दोनों में कड़ी प्रतिस्पद्र्धा है। यही प्रतिस्पद्र्धा सरकार के लिए संकट का कारण बनी हुई है। हालांकि अंग्रेजों की फूट करो और राज करो की नीति सरकार ने ही अपना कर समाज को दो धड़ों में बांट दिया है, मगर आज वह उसके सामने सुरसा के मुंह की तरह मुंह बाये खड़े हैं।
रहा सवाल गुर्जर समाज का, तो स्पष्ट है कि जिसने अपने नेताओं पर विश्वास करके अपने अनके जवानों को शहीद करवा दिया, अनेक कष्ठ झेले, भला वह आखिर कब तक और कैसे चुप रह सकता है? नेताओं ने जो राजनीति की, उसी का कारण है आज पूरा समाज अपने आपको ठगा सा सहसूस कर रहा है। आम गुर्जर तो यही समझ रहा है न कि उसे बेवकूफ बनाया जा रहा है। ऐसे में जन आक्रोष के बढ़ते दबाव में नेताओं की भी हालत खराब है। भले ही वे समझ रहे हैं कि जब तक कोर्ट में फैसला नहीं हो जाता, सरकार कुछ नहीं कर सकती, पर आपसी प्रतिद्वंद्विता और समाज के दबाव में आंदोलन करने को मजबूर हैं। कुल मिला कर सभी मजबूर हैं, अपने-अपने हिसाब से।
मगर अहम सवाल है आमजन का। वह इन सभी पक्षों की मजबूरियों के बीच पिसता जा रहा है। यह बात जायज भी लगती है कि इतर गुर्जर समाज आखिर कब तक सब्र करे। एक तो उसे इस बात का गुस्सा है कि पिछले आंदोलन के दौरान उसने अनेक कष्ट झेले, दूसरा ये कि आरक्षण के झगड़े में उसके युवाओं को बेरोजगारी से आखिर कब तक गुजरना पड़ेगा।
लब्बोलुआब, इन सभी मजबूरियों के चलते सरकार को फांसी लग रही है। उसे एक तो आंदोलनकारियों से निपटना है, दूसरी ओर खुदानखास्ता प्रतिक्रिया में कुछ हुआ तो उसे भी काबू में करना है। पिछली बार भी इसी प्रकार टकराव की नौबत आ गई थी, जिससे बड़ी मुश्किल से निकला जा सका। इतना ही नहीं उसे सुरक्षा बलों का दबाव भी झेलना पड़ता है। सरकार तो यह आदेश दे देती है कि आंदोलन से ऐसे निपटो कि कोई जनहानि न हो, मगर मौके पर मौजूद सुरक्षा कर्मी केवल मार खाने को राजी नहीं होते। हकीकत तो ये है कि पिछले आंदोलन में भी हुआ ये था कि सरकारी अधिकारी सुरक्षा बलों के आगे बेबस हो गए थे। मार खाते सुरक्षा कर्मियों ने सरकारी आदेशों को मानने से इंकार कर दिया था। परिणामस्वरूप खुल कर गोलीबारी हुई और अनेक मारे गए।
बहरहाल, अब सरकार के पास सिर्फ यही चारा है कि वह येन-केन-प्रकारेण गुर्जर नेताओं को वस्तुस्थिति की दुहाई दे कर फिलहाल शांत करे, वरना प्रदेश की वह कष्ट झेलेगी, जिसकी कल्पना से मन सिहर उठता है।

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