सोमवार, 6 दिसंबर 2010

ये कैसा आदर्श पेश किया गडकरी ने?

च्पार्टी विथ द डिफ्रेंसज् के नाम पर वोट बटोरने वाली और राजनीति में शुचिता की झंडाबरदार भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अपने बेटे की शादी को जिस शाही अंदाज से अंजाम दिया है, उससे यह साबित हो गया है कि पार्टी अब तथाकथित दकियानूसी आदर्शवाद के मार्ग का परित्याग कर चुकी है।
गडकरी के बेटे की शादी कितने भव्य तरीके से हुई है, इसका अनुमान इसी बात से लग जाता है कि अकेले शादी के निमंत्रण पत्रों तक पर एक करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। शादी देश की सत्ता पर काबिज होने की दूसरी सबसे प्रबल दावेदार पार्टी भाजपा के सिरमौर की थी, इस नाते उसकी भव्यता और विशालता भी उसी के अनुरूप थी। प्रीतिभोज में देश की नामचीन हस्तियों के साथ तकरीबन दो लाख लोगों के शिकरत करने के कारण नागपुर का सडक़ यातायात तो क्या हवाई मार्ग तक जाम हो गया। वीवीआईपी मेहमानों के विमानों में आने के कारण एक बार तो हालत यह हो गई कि तकरीबन तीस विमान नागपुर के आसमान में मंडराते नजर आए। उन्हें आसपास की हवाई पट्टियों पर उतारना पड़ा। भोज में कैसे व्यंजनादि कैसे होंगे, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। और इस पूरे आयोजन पर कितना पैसा फुंका होगा, इसका भी अंदाजा लगाया ही जा सकता है। आज जब शादियों पर अनाप-शनाप धन खर्च को आलोचना की दृष्टि से देखा जाता है, गडकरी के घर हुए इस जंबो आयोजन ने विरोधी दलों को तो छींटाकशी का मौका मिला ही है, खुद भाजपा के कार्यकर्ताओं तक में खुसर-पुसर है। चाय-पानी व बीड़ी-सिगरेट की थडिय़ों पर होने वाली सियासी बहसों में उनकी बोलती बंद हो गई है।
यह सही है कि शादी का आयोजन उनका निहायत निजी और पारिवारिक मामला है। वे कहां, कब, कैसे, किससे और कितनी धूमधाम से करते हैं, इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। उनके पास अपार धन है तो उसे वे खर्च करेंगे ही। और कैसे खर्च करते हैं, यह भी उनके क्षेत्राधिकार का मामला है। कोई पार्टी फंड से अनुदान लेकर तो कर नहीं रहे कि पार्टी की मीटिंग बुलवा कर तो तय करेंगे। और वे धन कुबेर हैं तो अपने दम पर, न कि भाजपा सदर होने के कारण। कदाचित सदर भी उसी के दम पर बने हों। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने सत्ता का स्वाद चखा है, इस कारण तब जमा किया पैसा अब खर्च कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात ये कि क्या पार्टी आदर्शों के चक्कर में अपने बेटे की खुशी को कुर्बान कर देंगे? आदमी आखिर अपने परिवार, अपने बच्चों की खातिर कमाता है, उन पर ही खर्च नहीं करेगा तो कहां करेगा? खुशी के मौके पर किसी प्रकार की टिप्पणी करना भी अशोभनीय ही कहा जाएगा। कदाचित ऐसी टिप्पणी को इस मायने में भी लिया जा सकता है कि पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध वे ही करते हैं, जिनके पास पूंजी नहीं होती। मगर बात छिड़ती है तो दूर तलक जाती है। उनके इस कृत्य से यह तो साबित हो ही गया है कि भाजपा भूखे-नंगों की पार्टी नहीं है। वह जमाना गया जब कार्यकर्ता के जेब खर्च से पार्टी के छोटे-मोटे आयोजन हुआ करते थे। चुनावों में कार्यकर्ता अपने घर का खाना खा कर प्रचार पर निकलते थे। अब तो पार्टी के खुद के पास ही मोटे आसामी हैं। अकेले गडकरी ने ही क्यों इससे पहले भाजपा नेता बलबीर पुंज व राजीव प्रताप रूड़ी भी इसी प्रकार के आलीशान भोज आयोजित कर पार्टी कल्चर के हो रहे रिनोवेशन का प्रदर्शन कर चुके हैं। ज्यादा दूर क्यों जाएं, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ऐयाशियों की कानाफूसी क्या कम हुआ करती थी। राजघराने से होने कारण उनके ठाठ ही ऐसे थे कि मुख्यमंत्री का सरकारी निवास उनको एक दड़बे जैसा लगता था, जिसके जीर्णोद्धार पर उन्होंने अनाप-शनाप सरकारी धन लगा दिया था। खैर, जितने बड़े लोग, उतनी ही बड़ी बातें। अपुन ठहरे छोटे आदमी। केवल इतना ही जानते हैं कि भाजपा की शीर्ष पंक्ति के नेता ही जब अपने सार्वजनिक जीवन में ऐसा व्यवहार करेंगे तो पार्टी कार्यकर्ताओं को आम जनता के बीच जा कर च्पार्टी विथ द डिफ्रेंसज् के नाम पर वोट हासिल करना कठिन हो जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें