बुधवार, 29 दिसंबर 2010

आम आदमी को भडक़ाया डॉ. जितेन्द्र सिंह ने?

गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की रेल पटरी पर ही वार्ता करने की जिद और सरकार की भी टेबल पर ही सुलह करने ठसक के बीच आखिर रेल पटरी पर ही पहुंचे ऊर्जा मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह का पत्ता खारिज होने के बाद भी सरकार ने उनकी ओर से गुर्जरों को अपील जारी करवाई है। आम आदमी की परेशानी को बयां करते हुए गुर्जरों से आंदोलन का रास्ता छोडऩे वाली यह अपील यूं तो काफी सधी हुई है, मगर अपील में बड़ी ही विनम्र भाषा में यह आग्रह चौंकाने वाला है कि गुर्जर आंदोलनकारी आम आदमी के सब्र की परीक्षा न लें। सिंह का यह बयान साफ तौर पर इशारा कर रहा है कि आंदोलन की त्रासदी लंबी चली तो इसकी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। अर्थात उन्होंने यह संकेत दे दिया है कि आम आदमी एक सीमा तक ही ठप्प हुई जिंदगी को बर्दाश्त करेगा। यद्यपि उनकी बात सच का आइना दिखाने वाली है, मगर ऐसा करके उन्होंने सरकार की ओर से गुर्जरों को डराया है या आम आदमी को भडक़ाया, कुछ समझ में नहीं आता। आम आदमी खुद-ब-खुद भडक़े यह तो समझ में आता है, मगर एक जिम्मेदार मंत्री यह भाषा इस्तेमाल करे तो स्थिति सोचनीय हो जाती है।
वैसे हकीकत ये है कि आंदोलन के कारण चौपट हुई व्यवस्था का भान कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को भी है। सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने इसका इजहार भी किया। साथ ही अपनी मजबूरी भी जता दी। सवाल-जवाब में स्थिति यहां तक आ गई कि खुद बैंसला को उलटे पत्रकारों से सवाल करना पड़ा कि आप ही बताइये अब मैं क्या करूं। एक अर्थ में यह सच ही है कि आंदोलन आज जिस मुकाम पर है, उसमें बैंसला खुद असमंजस की स्थिति में हैं। एक ओर समाज का पूरा दबाव है तो दूसरी ओर हाईकोर्ट के निर्णय के कारण सरकार की मजबूरी। इसके बीच का हल निकलना वाकई कठिन ही है। वार्ता चाहे पटरी हो या टेबल पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, इससे बैंसला की मूंछ जरूर ऊंची हुई कि उन्होंने सरकार को पटरी पर लाने को मजबूर कर दिया, मगर जब सुलह का कोई रास्ता ही नहीं है तो ऐसी वार्ता का हल भी क्या निकलना था। एक मात्र रास्ता ये है कि सरकार तब तक भर्तियां रोक दे, जब तक कि गुर्जरों का आरक्षण सुनिश्चित नहीं हो जाता, मगर देखना ये है कि सरकार ऐसा करके आम आदमी की नाराजगी मोल लेने का दुस्साहस दिखाती है या नहीं।

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