गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

गर्ग साहब, तो फिर विखंडन कहते किसे हैं?

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर का जयपुर में भी एक भवन बनाए जाने पर जैसे ही स्थानीय विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने विखंडन की आशंका जताई, वैसे ही त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग ने इस आशंका को निराधार बता दिया है। उन्होंने कहा कि बोर्ड का विखंडन नहीं किया जा रहा है। जयपुर में जो भवन बनाया जाना है, उसमें विद्यार्थी सेवा केन्द्र, उत्तर पुस्तिका संग्रहण और गेस्ट हाउस प्रस्तावित हैं। उन्होंने तर्क तो बड़ी चतुराई से दिए हैं, मगर उन्हीं से यह साबित हो रहा है, बोर्ड के काम का विकेन्द्रीकरण किया जा रहा है। विकेन्द्रीकरण और विखंडन भले ही शब्द अलग-अलग हों, मगर उनका प्रतिफल तो एक ही है। आखिरकार उससे बोर्ड का अजमेर में हो रहा काम बंटेगा ही ना।
सवाल उठता है कि जब बोर्ड के पास यहां पर ही पर्याप्त स्थान है और नया निर्माण कार्य भी हो रहा है तो आखिर जयपुर में उत्तर पुस्तिका संग्रहण व प्रशिक्षण केन्द्र के लिए अलग से जगह की जरूरत क्या है? जयपुर में अलग से बोर्ड भवन बना रहे हैं तो यह भी स्पष्ट है कि इससे अजमेर के बोर्ड दफ्तर का काम कुछ कम हो जाएगा। आखिर विखंडन फिर किसे किसे कहा जाता है?
उन्होंने तर्क ये दिया है कि डीपीसी सहित अन्य बैठकें जयपुर में बन रहे भवन के गेस्ट हाउस में हुआ करेंगी। अव्वल तो जयपुर में बैठकें करेंगे ही क्यों, क्या वे बैठकें अजमेर में नहीं हो सकतीं? क्या ऐसा करके बोर्ड प्रबंधन की बैठकों को विखंडित नहीं किय जा रहा है? फिर बाद में डॉ. गर्ग या उनके बाद आने वाले अध्यक्ष जयपुर में ही सारी या अधिकतर बैठकें किया करेगा तो उसे रोकने वाला कौन होगा? वे ये कह रहे हैं कि गेस्ट हाउस से बोर्ड कर्मचारियों को सुविधा होगी। क्या उन्होंने आकलन कर लिया है कि बोर्ड कर्मचारियों के जयपुर में अन्यत्र ठहरने का खर्चा गेस्ट हाउस बनने व उसे संचालित करने पर सालभर में होने वाले खर्चे से काफी कम है?
उन्होंने विद्यार्थियों की सुविधा के लिए जयपुर के नए भवन सहित प्रदेश के सभी जिलों में विद्यार्थी सेवा केन्द्र खोले जाने की बात कही है। क्या यह बोर्ड के काम का विकेन्द्रकरण और बोर्ड का विखंडन नहीं है? क्या इससे अजमेर के लोगों की आय पर असर नहीं पड़ेगा? हालांकि उनकी यह बात सही है कि इससे विद्यार्थियों को सुविधा होगी, मगर यदि केवल विद्यार्थी हित की ही बात है तो यह स्वीकार करने में फिर दिक्कत क्या है कि हां, एक तरह से विखंडन (विकेन्द्रीकरण) ही कर रहे हैं।
वस्तुत: बोर्ड विखंडन की बात से कहीं कर्मचारी न भडक़ जाएं, उन्होंने पहले ही साफ कर दिया कि यहां से कोई भी शाखा और कोई भी कर्मचारी स्थानांतरित किया जा रहा है। सवाल ये उठता है कि जयपुर के भवन में क्या जादू या रोबोट से काम करवाया जाएगा? जाहिर तौर पर वहां भी कर्मचारियों की जरूरत होगी। भले ही यहां से किसी कर्मचारी को न भेजा जाए, मगर वहां कर्मचारी नियुक्त तो करने ही होंगे। क्या वे बोर्ड कर्मचारी नहीं कहलाए जाएंगे? क्या उनकी तनख्वाह बोर्ड के फंड से नहीं दी जाएगी? और इस बात की गारंटी क्या है कि अभी नहीं तो भविष्य में भी यहां का कर्मचारी वहां नहीं भेजा जाएगा? क्या उन्होंने इस बारे में बोर्ड कर्मचारी संघ से कोई करार किया है? क्या उनके इस आश्वासन का कोई लिखित दस्तावेज मौजूद है? आश्चर्य तो इस बात का है कि बोर्ड के ताजा कदम से सबसे ज्यादा जो कर्मचारी वर्ग प्रभावित होगा, उन्हीं का संगठन चुप बैठा है। संदेह होता है कि क्या उन्होंने संघ के नेताओं को सैट कर लिया है?
असल बात तो ये है कि बोर्ड का विखंडन तो पहले से ही शुरू हो चुका है। पहले बोर्ड दूरस्थ शिक्षा के तहत परीक्षा आयोजित करवाता था, उसे यहां बंद कर अलग से ओपन बोर्ड बना दिया गया। क्या यह विखंडन नहीं है? इसी प्रकार पहले बोर्ड खुद पुस्तकों का प्रकाशन करता था, वह उसने पाठ्यपुस्तक मंडल को सौंप दिया है। क्या यह भी विखंडन नहीं है? इस विखंडन से इसी एक साल में बोर्ड की करीब दस से बारह करोड़ की आय छिन गई है।
ऐसा प्रतीत होता है कि बोर्ड अध्यक्ष को बोर्ड की आमदनी से भी कोई लेना-देना ही नहीं है। वे तो केवल वाहवाही लूटना चाहते हैं। जयपुर व अजमेर में हो रहे निर्माण कार्यों पर तकरीबन तीस करोड़ रुपए लग जाएंगे। इसका ब्याज कितना होता है? क्या यह उन्हें पता नहीं है कि बोर्ड की जिस आय को जो खर्च किया जा रहा है, वह बोर्ड कर्मचारियों की तनख्वाह बांटने के काम आती है? अभी तो कुछ भी नहीं हुआ है, आगे-आगे देखिए होता है क्या? ये तो गनीमत रही कि मौजूदा शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के इस दबाव को फिलहाल नहीं माना कि दसवीं की परीक्षा स्कूल स्तर पर ही करवा लिया जाए और बोर्ड केवल बारहवीं की परीक्षा आयोजित करे। आज नहीं तो कल, ऐसा होना ही है। तब परीक्षा से होने वाली बोर्ड की आय एक तिहाई रह जाएगी। बोर्ड अध्यक्ष भले ही यह कह रहे हैं कि बोर्ड में नई भर्ती का प्रस्ताव भेजा जा रहा है, लेकिन वस्तुस्थिति ये है कि बाद में हालत ये हो जाएगी कि मौजूदा स्टाफ ही सरप्लस नजर आने लगेगा।
कुल मिला कर सच तो ये है कि बोर्ड को विखंडित तो किया जा रहा है, बस चालाकी ये है कि उसे वे विखंडित करना मान नहीं रहे हैं।

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