मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

क्या मायने हैं कमजोर होते गहलोत पर वसु मैडम के हमले के?

जोशी और पायलट का बढ़ा सरकार में दखल
गुर्जर आंदोलन की आग की वजह संकट में घिरी अशोक गहलोत सरकार में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सी.पी. जोशी और केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का दखल बढ़ता दिखाई दे रहा है। ऊर्जा मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह के रेल पटरी पर बैठे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पास जा कर वार्ता करने के बाद भी जब बात पटरी पर नहीं आई तो कांग्रेस हाईकमान भी चिंतित हो उठा। वह इस कारण भी चिंतित है क्यों कि इससे न केवल राजस्थान में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई है, अपितु आंदोलन की आग दिल्ली तक भी पहुंचने लगी है। दिल्ली के आस-पास के गुर्जर भी उग्र होने लगे हैं। आंदोलन भले ही राजस्थान का हो, मगर चौपट तो केन्द्र के अधीन चलने वाली रेल व्यवस्था हो रही है। ऐसे में संकट का हल निकालने के लिए आखिरकार कांग्रेस हाईकमान के इशारे पर डॉ. जोशी व पायलट को भी मंत्रणा के लिए जयपुर बुलाना पड़ गया। जोशी को इसलिए कि वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं और पायलट को इसलिए कि उनमें आम गुर्जर स्व. राजेश पायलट का चेहरा देखते हैं। गुर्जर आंदोलन से निपटने में विफल होती जा रही गहलोत सरकार में इसे सीधे-सीधे जोशी व पायलट के बढ़ते दखल के रूप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस हाईकमान की नजर में जोशी व पायलट की कितनी अहमियत है, इसका खुलासा दिल्ली के पास बुराड़ी गांव में पिछले दिनों आयोजित कांगे्रस में राष्ट्रीय अधिवेशन में ही नजर आ गया था। राहुल के गुणगान े साथ संपन्न इस अधिवेशन में डॉ. जोशी के हाथों आर्थिक प्रस्ताव रखवाए जाने और राहुल बिग्रेड के पायलट को भी मंच से उद्बोधन देने का मौका दिए जाने से यह साफ हो गया था गहलोत की तुलना में उन्हें ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। गहलोत भले ही पुश्तैनी जादूगर होने के कारण सोनिया पर जादू चलाए हुए हैं, मगर राहुल पर तो अपनी विद्वता जादू जोशी ने ही चला रखा है। पायलट के बारे में बताने की जरूरत नहीं है कि वे राहुल के करीबी दोस्त हैं। इस अधिवेशन में गहलोत के समीकरण कितने कमजोर हुए, इसका खुलासा तो हालांकि नहीं हो पाया, लेकिन वे कितने आहत हुए इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गहलोत के बयानों से आहत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा तक पिछले तीन-चार दिन से इसका उल्लेख विशेष रूप से करके हमलावर मुद्रा में आई हुई हैं। किनारे पर आ कर प्यासी रह गई महारानी के मन में उनकी कुर्सी पर बैठ कर इठलाने वाले गहलोत का स्मरण आते ही सीने पर सांप लौटने लगते होंगे, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वे भले ही कांग्रेस सरकार को हटा पाने में सक्षम नहीं है, लेकिन कमजोर होते गहलोत की जड़ों में छाछ तो डाल ही सकती हैं। जैसे ही गहलोत ने आंदोलन को भडक़ाने में वसुंधरा का हाथ होने का बयान जारी किया तो वसु मैडम भडक़ उठीं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि नाकामियों की वजह से गहलोत प्रधानमंत्री की फटकार खा चुके हैं और इसी कारण आरक्षण विधेयक को नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए प्रधानमंत्री से मिलने से कतरा रहे हैं। उन्होंने यह न्यौता तक दे दिया कि वे चाहें तो उन्हें प्रधानमंत्री से मिलवाने में अपनी भूमिका अदा करने को तैयार हैं। कुटनीति में माहिर वसु मैम ने कांग्रेस में आग भडक़ाने के लिए इस बयान का भी सहारा लिया कि उनकी सरकार के दौरान कांग्रेस के समर्थन से पारित आरक्षण विधेयक की सी. पी. जोशी, बी. डी. कल्ला व जगन्नाथ पहाडिय़ा ने विधेयक की तारीफ की थी, क्या गहलोत इन तीनों को कांग्रेस हाईकमान के सामने नीचा दिखाना चाहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वसु मैम को कांग्रेस की अंदरूनी कमजोरी अच्छी तरह पता लग गई है और संकट में घिरे गहलोत को झटका देने के मौके को नहीं छोडऩा चाहतीं।
बहरहाल, गुर्जर आंदोलन के गतिरोध को तोडऩे की कवायद में डॉ. सिंह के साथ ही पायलट को जोडऩे के संकेतों से यह साफ हो गया है कि यह सब सोची-समझी राजनीति का नतीजा है। ऐसा करके राहुल ने कुछ दिन के मंथन के बाद सीधे खुद ही हाथ डाल दिया है। इस प्रकार हाथ डालने की स्टाइल से यकायक इंदिरा गांधी की याद ताजा हो जाती है, जो समय-समय पर मुख्यमंत्रियों की जड़ें उखाड़ कर देखती रहती थीं कि कहीं वे जमने तो नहीं लगी हैं। हालांकि निश्चित रूप से यह दूर की कौड़ी है कि अशोक गहलोत को हटा कर जोशी को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, मगर जोशी व पायलट का बढ़ता दखल इतना तो इशारा कर ही रहा है कि प्रदेश में कोई नया तानाबाना बुना जा रहा है।

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