बुधवार, 22 दिसंबर 2010

असली मुद्दों से भटका रहे हैं दिग्विजय सिंह

एक ओर जहां पूरा देश अनगिनत घोटालों की खुलती परतों से अचंभित और चिंतित है, ऐसे में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह आम सोच का ध्यान भटकाने के लिए लगातार संघ और भाजपा पर हमले किए जा रहे हैं। और दिलचस्प मगर अफसोसनाक बात ये है कि शुरू से अति प्रतिक्रियावादी संघ और भाजपा भी उनकी छेडख़ानी से उत्तेजित हो कर पलट वार करते हुए सिंह के मकसद को कामयाब कर रहे हैं। इस हल्ला बोल प्रतिस्पद्र्धा का ढंका हुआ सच ये है कि सिंह तो केवल संगठन को ही निशाने पर लेते हैं, जबकि संघ व भाजपा भडक़ कर सीधे सोनिया व राहुल पर व्यक्तिगत घटिया टिप्पणियां उछालते हैं, जिसका परिणाम ये होना है कि सोनिया व राहुल को बोनस में सहानुभूति मिल जाने वाली है।
अहम सवाल ये है कि बड़बोले बयानों से सदैव सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय सिंह का यह कहना कि हेमंत करकरे ने मुंबई हमले से कुछ घंटे पहले उन्हें फोन कर कहा था कि उन्हें हिंदू आतंकवादियों से खतरा है, क्या सोची समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा नहीं है? उन्होंने यह बयान तब दिया, जब कि लगातार उघड़ते जा रहे घोटालों के कारण कांग्रेस सरकार बुरी तरह से घिरी हुई है। केवल भ्रष्टाचार के कारण ही संसद का पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। हालत ये हो गई कि कांग्रेस और भ्रष्टाचार एक दूसरे पर्याय नजर आने लगे हैं। हालांकि भ्रष्टाचार से सड़ चुके पूरे तंत्र की टीस आमजन में अंदर तक पैठ गई है, मगर कहीं इस मुद्दे भाजपा जनता में उबाल लाने में कामयाब न हो जाए, दिग्विजय सिंह ने सियासी माहौल की दिशा को बदलने का बीड़ा सा उठा लिया है। दिग्विजय ने जैसे संघ पर निशाना साधते हुए कहा कि तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे को हिंदुत्ववादी ताकतों से खतरा था, बवाल हो गया। ऐसे में बड़ी चतुराई से कांग्रेस ने इस बयान से अपने को दूर कर लिया। यूं दिग्विजय ने भी पलटी मारी, मगर यह कहने से तब भी नहीं चूके कि उन्होंने मुंबई हमले के पीछे हिंदू आतंकवादियों का हाथ होने की बात नहीं की। ऐसा करके उन्होंने बड़ी चालाकी से हिंदू आतंकवाद शब्द को स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की। यह ठीक है कि उन्होंने देश की अंदरुनी राजनीति के तहत ऐसा बयान दिया, मगर इससे दुनिया में हमारे देश का यह तर्क तो कमजोर हुआ ही है कि मुंबई हमला पूरी तरह पाकिस्तान आधारित हमला था और इसे पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों ने अंजाम दिया।
सिंह की बयानबाजी से 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला तथा राष्ट्रमंडल खेल घोटाले से लोगों का ध्यान हटा या नहीं, मगर इसी बीच विकीलीक्स पर यह जानकारी उजागर हुई कि मुंबई हमले के बाद कुछ कांग्रेसी नेताओं ने धर्म की राजनीति शुरू कर दी थी, कांग्रेस खुद सांप्रदायिकता के आरोपों से घिर गई। इससे यह बात तो पुष्ट हुई ही है कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों को साम्प्रदायिकता का भय दिखाकर चुनावी लाभ अर्जित करती रही है। जैसे भाजपा हिंदुत्व को भडक़ा कर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप ढ़ो रही है, वैसे ही कांग्रेस पर भी प्रतिक्रियात्मक सांप्रदायिक राजनीति करने का कलंक जड़ गया है।
इस पूरी जुबानी जमाखर्ची के बीच यह सवाल तो उठता ही है कि दिग्विजय सिंह ने दो साल तक तथ्य को क्यों छिपाए रखा? क्या उन पर जांच एजेंसियों को जानकारी देने का दायित्व नहीं था? यह भी कि कोई एटीएस प्रमुख किसी राजनेता से इस प्रकार का अनुभव क्यों साझा करेगा, यानि कि ऐसी जांचें राजनीतिक पार्टियों से निर्देशित होती हैं? जिज्ञासा ये भी होती है कि दिग्विजय सिंह व करकरे के संबंध कैसे थे? हालांकि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने तथ्यों की जांच का आश्वासन दिया, मगर वास्तविकता इसलिए सामने आने की उम्मीद नहीं है क्यों कि वहां कांग्रेस की ही सरकार है।
लब्बोलुआब, बयानबाजी के इस लंबे सिलसिले का मकसद साफ नजर आता है कि दिग्विजय सिंह को भ्रष्टाचार के आरोप से त्रस्त कांग्रेस सरकार पर लगातार बढ़ रहे दबाव से मुक्त कराने का जिम्मा दिया हुआ है। वरना क्या वजह है कि राहुल ने भी बाद में संघ की तुलना सिमी से की। यानि यह सब कुछ सोची समझी राजनीति का हिस्सा है। पहले सिंह से शब्द बाण चलवाए जाते हैं और फिर उसकी प्रतिक्रिया देख कर उसी के अनुरूप हाईकमान भी बोलने लग जाता है। रविवार को शुरू हुए कांग्रेस महाधिवेशन में भी सिंह ने संघ पर निशाना साधते हुए कहा कि वह हिटलर की नाजी सेना की तरह है। उन्होंने बड़ी मौलिक बात ये उठाई कि अब तक यह पूछा जाता था कि सारे मुसलमान आतंकी नहीं हैं तो हर पकड़ा गया आतंकी मुसलमान ही क्यों होता है, वैसे ही संघ यदि आतंकवादी संगठन नहीं है तो अब तक पकड़े गए सभी हिंदू आतंकी संघ से ही क्यों जुड़े हुए हैं। जाहिर तौर पर इससे संघ फिर भडक़ेगा और उसके पास निशाना साधने के लिए राहुल को बच्चा और सोनिया को विदेशी कहने के सिवाय कोई चारा नहीं रहेगा। इसका परिणाम भले ही अभी संघ को नहीं समझ में आए, मगर सोनिया व राहुल को ठीक उसी तरह से सहानुभूति मिल जाएगी, जिस तरह लगातार व्यक्तिगत आरोप झेलने वाली इंदिरा गांधी ने फिर सत्ता पर कब्जा कर लिया था।

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