मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

जिस शहर में लगा संघ पर दाग, वहीं से सिंहनाद करेंगे भागवत


जैसे ही यह जानकारी अखबारों में शाया हुई है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक प्रमुख भागवत पांच दिन के लिए अजमेर आ रहे हैं, तो हरएक की जुबान पर यह सवाल है कि संघ पदाधिकारियों की बैठकें लेने और आमसभा करने के लिए उन्होंने अजमेर को ही क्यों चुना है। यह गतिविधि तो प्रदेश मुख्यालय जयपुर में भी हो सकती थी। जानकार लोग इसे सीधे तौर पर ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हुए बम विस्फोट और उसकी वजह से संघ पर उठ रही संदिग्ध नजरों के साथ जोड़ कर देख रहे हैं। समझा जाता है कि भागवत यहां न केवल संघ में प्रवेश कर गए उग्रपंथी तत्वों से सावधान रहने की नीति तय करेंगे, अपितु भगवा आतंकवाद का टैग उतारने के लिए इसी पाक शहर से संघ के पाक साफ होने का सिंहनाद भी करेंगे।
उल्लेखनीय है कि लंबी जांच-पड़ताल के बाद जब जांच एजेंसियां इस निष्कर्ष पर पहुंची कि दरगाह बम विस्फोट में संघ से जुड़े लोगों का हाथ है और इस सिलसिले में गिरफ्तारियां भी हुईं तो पहली बार संघ के नेताओं की पेशानी पर चिंता की लकीरें उभर आईं। हैदराबाद की मक्का मस्जिद और मालेगांव सहित अजमेर की दरगाह ख्वाजा साहब में हुए बम विस्फोटों से संघ से जुड़े लोगों के नाम जुडऩे के साथ ही देशभर में भगवा आतंकवाद पर भी गरमागरम बहस छिड़ गई। एटीएस की ओर से कोर्ट में पेश की गई 809 पेज की चार्जशीट में पहले तो संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश जी का नाम आया और फिर चार्जशीट के पन्नों को खंगाला गया तो मुख्य आरोपी सुनील जोशी की डायरी में संघ के प्रवक्ता राम माधव सहित गोरखपुर के भाजपा सांसद आदित्यनाथ व अरसे तक प्रचारक रहे अनिल के नाम भी उभर कर आ गए। ऐसे में भगवा आतंकवाद के नाम पर कड़ा ऐतराज करने वाले तमाम भाजपा नेताओं के सुर यकायक नीचे हो गए हैं। यहां तक कि संघ प्रमुख भागवत तक को यह कहना पड़ गया कि संघ कभी आतंकवाद का पोषक नहीं रहा और जब कभी उग्र विचार के लोग संघ में घुस गए, उन्हें या तो बाहर कर दिया गया या फिर ऐसे हालात कर दिए गए कि वे संघ छोड़ कर चले गए। ऐसा कह कर उन्होंने साफ तौर पर बम विस्फोटों में शामिल आरोपियों से अपना पल्लू छुड़वा लिया है।
राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व गृह मंत्री शांति धारीवाल ने संघ के कुछ लोगों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगाए और छींटे जब पूरे संघ पर लगने लगे तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी को इन्द्रेश कुमार का बचाव करते हुए कहना पड़ा कि सरकार उन्हें झूठा फंसाने का षड्यंत्र रच रही है। यह एक ऐसे व्यक्तित्व को बदनाम करने की साजिश है, जिसने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के माध्यम से सभी मजहबों में भाईचारा कायम करने के लिए सेतु का काम किया है। कुल मिला कर बयानों के युद्ध के बीच इस बात इशारा तो मिलता है कि संघ की अनुशासित फौज में नहीं चाहते हुए भी एक नया उग्रवादी वर्ग उभर रहा रहा है। उसे बचाने का प्रयास करने पर आंच बड़े नेताओं तक पहुंचने लगी है।
असल में देशभर में अब तक हुई अनेकानेक आतंकी वारदातों में लगातार कट्टरपंथी मुस्लिमों के नाम आने और उनके पाकिस्तान से जुड़े होने के कारण यह आम धारणा बन गई थी कि केवल इस्लामिक आतंकवाद ही वजूद में है। मगर मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम विस्फोट के मामले में ठाकुर प्रज्ञासिंह के गिरफ्तार होने के साथ ही यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि कांग्रेस हिंदूवादियों के नाम भी आतंकवाद से जोड़ कर इसे भगवा आतंकवाद का नाम दे रही है। न केवल संघ और भाजपा से जुड़े नेताओं ने भगवा आतंकवाद के नाम पर ऐतराज जताना शुरू कर दिया, अपितु हिंदूवादी मानसिकता के पत्रकारों ने भी इस शब्द की विवेचना कर यह साबित करने की कोशिश की कि हिंदू कभी आतंकवादी हो ही नहीं सकता। हिंदू जमात को शांतिप्रिय और सहिष्णु साबित करने के लिए सबसे बड़ा तर्क ये दिया गया कि अगर हिंदू उग्रवादी होता तो देश पर कभी मुगल शासक कब्जा नहीं कर सकते थे। वस्तुत: हिंदुओं को सहिष्णु बताने के सिलसिले में दिए गए ये तर्क सौ फीसदी सच ही नजर आते हैं, मगर कुछ कट्टरपंथी हिंदूवादियों को बचाने की खातिर संपूर्ण हिंदू जमात की सहिष्णुता, जिसे एक अर्थ में कायरता भी कहा जाता है, वह सही ठहराई जा रही है। जब कि वस्तु स्थिति यही नजर आती है कि संघ से जुड़े कुछ कट्टरपंथी चाहे-अनचाहे अब उग्रवाद की ओर बढ़ रहे हैं। इस ओर एटीएस की चार्जशीट में भी इशारा किया गया है। चार्जशीट में कहा गया है कि संघ ने भले ही संगठन के स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से विस्फोटों की साजिश नहीं रची हो, मगर संघ से जुड़े कुछ लोगों ने देशभर में इस्लामी आतंकवाद की प्रतिक्रिया में बम विस्फोट किए हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि संघ के नेता इंद्रेश कुमार पर जैसे ही यह आरोप लगा कि उनकी भी बम विस्फोट में कोई भूमिका है, उनके कथित मित्र और छत्तीसगढ़ हज कमेटी व मदरसा बोर्ड के सदर सलीम रजा यहां उनकी सलामती के लिए ख्वाजा साहब के दर पर दुआ मांगने आए थे। इतना ही नहीं उन्होंने जाते-जाते खुद व ख्वाजा साहब के बीच हुई निहायत निजी दुआ को उजागर भी कर दिया, ताकि पूरे मुल्क में यह संदेश जाए कि मुस्लिमों को भी यकीन नहीं कि वे दरगाह में बम फोडऩे की हरकत करवा सकते हैं। इतना ही नहीं रजा ने इंद्रेश कुमार को संघ से जुड़े होते हुए भी हिंदू-मुस्लिम एकता का सच्चा हिमायती होने का ऐलान कर दिया।
इन सब से इतर सर्वाधिक उल्लेखनीय बात ये है कि हाल ही एक मुस्लिम संगठन ने भी एक जलसा करने के लिए अजमेर को चुना और दरगाह बम विस्फोट में शामिल लोगों पर गिरफ्त मजबूत करने पर जोर दिया था। उस जलसे के तुरंत बाद संघ प्रमुख की पांच दिन की मौजूदगी से शहर और अधिक संवेदनशील हो जाएगा।

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