मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

कांग्रेस को हमला करने का मौका ही क्यों दिया संघ ने?


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों अजमेर प्रवास पर हैं। वे यहां पांच दिन तक संघ के विभिन्न पदाधिकारियों स्वयंसेवकों के साथ वैचारिक मंथन करेंगे। जाहिर है कांग्रेस की ओर से बहुप्रचारित शब्द च्भगवा आतंकवादज् पर भी यहां चर्चा होगी और उससे मुक्त होने पर भी गहन विचार होगा। तीर्थराज पुष्कर दरगाह ख्वाजा साहब को अपने आंचल में समेटे इस पावन धरा से, जो कि पूरे विश्व में सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देती है, संघ को भी ऐसे ही सद्भाव का संदेश देने का यह सुअवसर है। विशेष रूप से इस वजह से भी, क्योंकि कथित रूप से संघ पृष्ठभूमि के कुछ अतिवादियों की ओर से दरगाह में विस्फोट को अंजाम दिए जाने के कारण अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त यह शहर कुछ और संवेदनशील हो गया है। जाहिर तौर पर पूरे देश की नजर इन दिनों अजमेर पर रहेगी, क्योंकि यहां से दिए गए संदेश की गूंज देशभर में दूर-दूर तक सुनाई देगी।
यह सही है कि कांग्रेस ने हैदराबाद की मक्का मस्जिद और मालेगांव में हुए विस्फोटों से ही भगवा आतंकवाद की रट शुरू कर दी थी, मगर करोड़ों मुसलमानों के साथ हिंदुओं के भी आस्था केन्द्र दरगाह में विस्फोट के बाद कांग्रेस को, संघ को और ज्यादा घेरने का मौका मिल गया। परिणामस्वरूप बचाव में भागवत सहित संघ भाजपा के सभी नेताओं को एक स्वर से यह कहना पड़ा कि संघ तो कभी आतंकवादी संगठन रहा और ही उसने कभी योजनाबद्ध तरीके से आतंक फैलाने की कोशिश की। उसे तो कांग्रेस षड्यंत्र रच कर बदनाम करना चाहती है। भागवत को तो यह भी स्वीकार करना पड़ा कि जब कभी अतिवादी लोग संघ में घुसे, उन्हें बाहर कर दिया गया। ऐसा कह कर उन्होंने साफ तौर पर बम विस्फोटों में शामिल आरोपियों से अपना कोई भी नाता होने की दलील दी। चाहे यह कांग्रेस का षड्यंत्र हो या फिर वाकई संघ के नीति-निर्देश से बाहर जा कर उग्र प्रतिक्रियावादियों ने घटिया हरकत की हो, मगर इसमें कोई दोराय नहीं है कि विक्रम संवत् 1982 (सन् 1925) की विजयादशमी के दिन स्थापित राष्ट्रवादी संघ को पहली बार हिंदू बहुल देश में इस्लामिक कट्टरवादियों की श्रेणी में खड़ा किए जाने से उत्पन्न हालात से सामना करना पड़ रहा है। जिस संगठन के लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि रहा हो, उसे अगर राष्टद्रोह का आरोप झेलना पड़ रहा है तो यह निस्संदेह शर्मनाक है। स्वयं संघ के लिए भी और उनके लिए भी, जो चंद अतिवादियों की हरकत से पूरे संघ को ही कटघरे में खड़ा किए दे रहे हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे ही देशभर में जगह-जगह इस्लामिक संगठनों ने विस्फोट का सिलसिला शुरू किया तो संघ पृष्ठभूमि के कुछ अति उत्साही स्वयंसेवकों के भीतर प्रतिक्रिया का भाव जागृत हुआ। यद्यपि यह कोर्ट ही तय करेगा कि संघ के लोगों ने विस्फोट किए या नहीं, मगर इतना तो तय सा लग रहा है कि किसी किसी स्तर पर उनकी संलिप्तता जरूर रही होगी, वरना एटीएस बिलकुल हवा में तो आरोप तय नहीं कर रहा। भागवत के बयान से भी संकेत मिलता है कि षड्यंत्र में संघ के किसी भी स्तर पर शामिल होने पर भी कुछ अतिवादियों ने ऐसी हरकत कर दी होगी, जिसका खामियाजा संघ को भुगतना पड़ रहा है। सवाल ये उठता है कि भले ही संघ के किसी कार्यालय में विस्फोट की साजिश नहीं रची गई, लेकिन संघ से किसी किसी रूप में जुड़े लोगों का ऐसी हरकत को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? संघ ने कांग्रेस को कथित रूप से कुप्रचार करने का मौका क्यों दिया? यदि संघ प्रमुख भागवत को ऐसे लोगों के बारे में जानकारी हो गई थी तो उन्होंने सरकारी जांच एजेंसियों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी, ताकि समय रहते उनसे छुटकारा पा लिया जाता। क्यों भाजपा नेता संघ के बचाव में लगातार यह रट लगाते रहे कि कांग्रेस उसे झूठा ही बदनाम कर रही है? इसका परिणाम ये हुआ कि जैसे ही चार्जशीट पेश हुई और उसमें इंद्रेश कुमार जैसे जिम्मेदार पदाधिकारी पर भी शक की सुई घूमी तो भाजपा नेताओं की बोलती बंद हो गई। उनके पास यह कहने के सिवाय कोई चारा रहा कि कांग्रेस सरकार उन्हें झूठा फंसा रही है। दूसरी ओर संघ भाजपा पर अब तक सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस को भगवा आतंकवाद का शब्द गढऩे का मौका मिला गया। इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को इस आरोप का भी सामना करना पड़ा कि जानकारी तो उनको भी हो चुकी थी कि बम विस्फोट में किन लोगों का हाथ था, मगर जानबूझ कर मामले को दबाये रखा। यद्यपि जब तक कोर्ट का फैसला नहीं जाता, तब तक कुछ भी सुनिश्चित करना असंभव है, लेकिन जिस प्रकार घटनाक्रम घूमा है, भाजपा संघ को रक्षात्मक मुद्रा में आना पड़ा है।
बहरहाल, संघ प्रमुख भागवत के रवैये से स्पष्ट है कि वे अब हर हाल में भगवा आतंकवाद के कथित जबरन थोपे गए दाग से संघ को मुक्त करवाना चाहेंगे। इस दिशा में प्रयास शुरू कर भी दिए गए हैं। इसके लिए दो स्तर पर काम करना होगा। एक ओर जनता में हुए कुप्रचार को साफ करना और दूसरा संघ के नेटवर्क को और मजबूत करके अतिवादियों पर अंकुश लगाना। उम्मीद है अजमेर प्रवास के दौरान वे कुछ ठोस निर्णय लेने का आगाज करेंगे। इसके लिए निस्संदेह अजमेर सर्वाधिक उपयुक्त स्थान है। इस शहर का आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व इसी तथ्य से आंका जा सकता है कि सृष्टि के रचयिता प्रजापिता ब्रह्मा ने तीर्थगुरू पुष्कर में ही आदि यज्ञ किया था। सूफी मत के कदीमी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने भी रूहानी संदेश के लिए अजमेर को ही चुना। इतना ही नहीं सियासी नजरिये से भी इस भूमि के गौरव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह सम्राटों, बादशाहों और ब्रितानी शासकों की सत्ता का केन्द्र रहा है। उम्मीद है कि मोहन भागवत भी इस ऐतिहासिक भूमि को और गौरवान्वित करेंगे।

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