रविवार, 20 फ़रवरी 2011

अमीन खां को जल्द पटाना होगा कांग्रेस को


राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील के बारे में घटिया टिप्पणी करने पर मंत्री पद से हाथ धो चुके अमीन खां को कांग्रेस को जल्द पटाना होगा, वरना भाजपा और बसपा उनका स्वागत करने को तैयार बैठे हुए हैं।
असल में अमीन खां की टिप्पणी जिस तरह सामने आई, उससे तो यही लगा कि उन्होंनेे राष्टपति पद की गरिमा पर चोट पहुंचाई है, इस कारण यकायक ऐसा माहौल बन गया कि कांग्रेस सहित भाजपा ने भी उनके त्यागपत्र की मांग कर डाली। लेकिन अब जब कि उन्होंने विधानसभा में यह मार्मिक बयान दिया है कि उनकी मंशा राष्ट्रपति श्रीमती पाटील की तौहीन करने की नहीं थी और उन्हें धारा 323 के अपराध की सजा 302 के रूप में मिली है, उनके प्रति माहौल में नरमी महसूस की जा रही है। उन्होंने पूरे वाकये का जिस प्रकार खुलासा किया है, उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि वे अपने बयान पर शर्मिंदा तो हैं, लेकिन जितनी बड़ी सजा मिली है, उससे पीडि़त हैं। उन्हें इस बात का भी मलाल है कि पूरे प्रकरण में मीडिया और सत्तापक्ष के ही लोगों की साजिश है, जिनकी वजह से उनके बयान को काफी गंभीर बना दिया गया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया।
एक ओर जहां कांगे्रस यह समझती है कि भले ही उनका बयान बेवकूफी से भरा था, इस कारण उस वक्त उनका इस्तीफा लेने के अलावा कोई चारा नहीं था, वहीं वह यह भी जानती है कि पश्चिम राजस्थान में वे जमीन से जुड़े नेता हैं और अल्पसंख्यकों के वोटों पर उनकी गहरी पकड़ है। यदि नाराज हो कर पार्टी छोड़ते हैं तो बहुत बड़े वोट बैंक से हाथ धोना पड़ेगा। जिस तरह जलील हो कर अमीन खां को इस्तीफा देना पड़ा, उस पर मरहम लगाने के लिए भाजपा व बसपा ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। भाजपा में विशेष रूप से पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह व उनके पुत्र मानवेन्द्र सिंह ने उन्हें पार्टी में शामिल करने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। वे जानते हैं कि अगर अमीन खां पार्टी में आ गए तो इससे सीधे तौर पर उन्हें फायदा होगा। विधानसभा में विपक्ष के उप नेता घनश्याम तिवाड़ी का नियम 133 के तहत पूछे गए इस्तीफे के कारण को अमीन खां के जख्म पर मरहम के रूप में समझा जा रहा है, जिसकी वजह से उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिला। उन्हें पार्टी में लाने में बाधा सिर्फ ये है कि उनके इस्तीफे का दबाव बनाने में भाजपा ने भी भूमिका अदा की थी। उधर बसपा भी मौके को नहीं चूकना चाहती। उसे अपने सभी छह विधायकों के कांग्रेस में शामिल हो जाने की भारी पीड़ा है, जिसकी वजह से राजस्थान में बसपा को बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। वह अमीन खां को अपने पाले में ला कर कांग्रेस के झटके का बदला चुकता करना चाहती है। इससे एक बड़ा फायदा ये भी होगा कि उसे अगले विधानसभा चुनाव में फिर से अपनी मौजूदगी दर्शाने का मौका मिल जाएगा।
कांग्रेस भी समझ रही है कि अगर अमीन खां को जल्द ही नहीं पटाया गया तो भाजपा या बसपा उन्हें ले उड़ेगी। यही वजह है कि भीतर ही भीतर उन्हें किसी न किसी तरह सम्माजनक तरीके से समायोजित करने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन चूंकि मामला सीधे हाईकमान से जुड़ा हुआ है, इस कारण किसी की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं है। समझा जाता है कि मुख्यमंत्री गहलोत हाईकमान को अमीन खां को खोने से होने वाले नुकसान से अवगत करवाएंगे। हालांकि अमीन खां को तिवाड़ी के सवाल पर जवाब देने का मौका मिला, लेकिन उनकी सफाई से कांग्रेस में भी उनके प्रति सहानुभूति का माहौल बना है। देखना ये है कि कांग्रेस उन्हें शांत कर पाती है अथवा भाजपा या बसपा अपने पाले में ले जाने में कामयाब हो जाती हैं।

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