रविवार, 30 जनवरी 2011

नियुक्ति का इंतजार करते-करते थके कांग्रेसी


सब्र टूटा, आखिर उठने लगे विरोध के स्वर
कांग्रेस के प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने को दो साल बाद भी राजनीतिक नियुक्तियां न होने से कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं में घोर निराशा और मायूसी के बीच अब विरोध के स्वर भी मुखर होने लगे हैं। हालांकि राजनीतिक नियुक्तियां न होने की वजह से कार्यकर्ताओं के भीतर आक्रोश तो काफी समय से है, लेकिन उसे उजागर करने पर नुकसान होने के डर से सभी मन मसोस कर बैठे थे। अब जब कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. सी. पी. जोशी सहित प्रतापसिंह खाचरियावास व राजेन्द्र सिंह विधूड़ी ने धरातल के नीचे कार्यकर्ताओं में सुलग रही आग का खुलासा कर दिया है, विरोध के स्वर और तेज होने की आशंका है। ऐसे में सरकार बजट सत्र से पहले ही कुछ महत्वपूर्ण नियुक्तियां करने को मजबूर हो जाएगी।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राज में राजनीतिक नियुक्तियों पर चर्चा ही नहीं हुई। चर्चा तो खूब हुई है। केवल चर्चा ही नहीं, बल्कि कवायद भी पूरी हुई है। असल बात तो ये है कि जितने भी राजनीतिक पद हैं, उन सभी के दावेदारों की फाइलें तैयार हो गई हैं और मेरिट तक तय है। जैसे ही नियुक्तियां होने की चर्चा परवान चढ़ती है, कोई न कोई बाधा आ जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि चर्चा हो कर ही रह जाती है। स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी बीच-बीच में शगूफा छोड़ देते हैं कि नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है। वे न बोलें तो तो मीडिया बुलवा देता कि अब तक तो अमुक कारण से नियुक्तियां नहीं हुई, अब तो हो ही जाएंगी। ऐसे करते-करते दो साल से ज्यादा समय बीत गया और कांग्रेसी गहलोत का मुंह ताकते ही रहे। विशेष रूप से वे जो विधानसभा, लोकसभा, स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव के दौरान टिकट से वंचित रह गए थे।
वस्तुत: जब विधानसभा चुनाव हुए तो जाहिर तौर सभी दावेदारों को तो टिकट देना संभव नहीं था, इस कारण जिन को टिकट नहीं दिया, उन्हें यह लॉलीपाप पकड़ा दी गई कि सरकार बनी तो आपका ध्यान रखा जाएगा। जो नेता बागी बन कर खड़े हो गए उन्हें भी समझा-बुझा कर बैठा दिया गया कि बाद में जरूर कोई न कोई लाभ का पद दे दिया जाएगा। यह की यह स्थिति अन्य चुनावों के दौरान हुई और टिकट से वंचित दावेदारों ने केवल इसलिए चुप्पी साध ली, क्योंकि उन्हें गहलोत से इनाम की आशा थी। ऐसा नहीं है कि अकेले टिकट से वंचित नेता ही नियुक्ति के इंतजार में हैं, कई विधायक भी मंत्रीमंडल विस्तार होने की बाट जोह रहे हैं। इस बार संयोग से कांगे्रस को निर्दलियों के सहयोग से सरकार बनानी पड़ी। बाद में विधानसभा में बहुमत के लिए बहुजन समाज पार्टी के सभी छहों विधायकों को भी कांग्रेस में शामिल कर लिया गया। ऐसे में सरकार की मदद करने वालों को तो तोहफा देना ही था। कुछ को पहले मंत्रीमंडल के गठन के वक्त दिया गया और कुछ को मंत्रीमंडल के विस्तार में खुश कर दिया गया। नतीजतन अनेक पात्र कांग्रेसी विधायकों को मन मसोस कर रह जाना पड़ा।
विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनाव के कारण नियुक्तियों पर विचार नहीं किया गया और कांग्रेसी नेताओं को यह कह कर चुप किया गया कि वे फिलहाल चुप रहें, लोकसभा चुनाव में परफोरमेंस देखने के बाद उसी के आधार पर इनाम दिया जाएगा। लोकसभा चुनाव में जीत के लिए कई बागियों को भी पार्टी में वापस बुला लिया गया। अर्थात वे भी चुनाव के बाद राजनीतिक नियुक्तियों के हकदार हो गए। लेकिन इस बीच बजट सत्र सामने आ गया और सरकार उसमें व्यस्त हो गई। बजट सत्र सकुशल समाप्त हुआ ही कि बारिश की कमी से पड़े अकाल में महंगाई आसमान छूने लगी। कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी तक ने मितव्ययता बरतने की सीख दे दी। ऐसे में भला गहलोत किस मुंह से अकाल में नियुक्तियां कर सरकार पर बोझ डाल सकते थे। अभी वह दौर समाप्त हुआ ही नहीं कि प्रदेश के कई स्थानीय निकायों के चुनाव आ गए और गहलोत उसमें व्यस्त हो गए। आचार संहिता भी आड़े आ रही थी। इस चुनाव में मिली सफलता की खुमारी मिटी भी नहीं थी कुछ दिन बाद ही पंचायत चुनाव का दौर शुरू हो गया। उससे फुरसत मिली और विचार करने में थोड़ा वक्त गंवाया कि स्थानीय निकाय के चुनाव बाधा बन गए। इन चुनावों के बाद भी नियुक्तियां नहीं हुई तो यह आशा की गई कि कांग्रेस अधिवेशन के बाद कुछ होगा। सुना यह भी गया कि हाईकमान ने नियुक्तियों की हरी झंडी दे दी है, फिर भी कुछ नहीं हुआ तो आक्रोश फूट ही पड़ा। कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि जल्द ही नियुक्तियां नहीं हुईं तो फिर बजट सत्र आ जाएगा। कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं में गहलोत की ब्यूरोक्रेसी पर निर्भरता को ले कर भी भारी पीड़ा है। उनका मानना है कि गहलोत की शह के कारण अफसरशाही कांग्रेसी नेताओं की परवाह ही नहीं करती। पिछले दिनों अजमेर नगर सुधार न्यास में न्यास सचिव अश्फाक हुसैन व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के बीच हुए टकराव को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। इसका परिणाम ये हुआ कि अपनी ही पार्टी की सरकार के होते हुए कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं ने न्यास दफ्तर में जा कर हंगामा कर दिया।
बहरहाल, प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य के मुंह खोलने से अब सरकार पर भारी दबाव है और उम्मीद की जा रही है कि महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय नियुक्तियां तो हो ही जाएंगी।

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