रविवार, 2 जनवरी 2011

पायलट की मध्यस्थता पर हो रहा है विरोधाभास

गुर्जर आरक्षण आंदोलन आज ऐसे मुकाम पर आ खड़ा हुआ है कि एक ओर आरक्षण के सर्वेसर्वा कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला मध्यस्थ के रूप में केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट और अन्य कांगे्रसी गुर्जर नेताओं पर विश्वास कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हीं के समर्थक पायलट पर भरोसा करने से कतरा रहे हैं। विशेष रूप से अजमेर में तो यह विरोधाभास अधिक ही है।
गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अजमेर संभाग संयोजक ओम प्रकाश भडाना को शिकायत है कि पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ही भाषा बोल रहे हैं। उनका तर्क ये है कि पायलट भी गहलोत की तरह ही हाईकोर्ट के निर्णय की दुहाई दे रहे हैं, जबकि पूरे गुर्जर समुदाय को पहले से पता है कि हाईकोर्ट का फैसला क्या है। पायलट को ये बताना चाहिए कि मौजूदा हालात में गुर्जरों को कैसे आरक्षण मिल सकता है। अब भडाणा को कौन बताए कि इसका जवाब तो खुद मुख्यमंत्री के पास नहीं है, तभी तो इतने दिन से सिर धुन रहे हैं। कभी टेबल पर ही बात करने पर अड़ते हैं तो कभी सरकार की ओर से ही रेलवे पटरियों पर ऊर्जा मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह को भेजते हैं। कभी गुर्जरों को आम आदमी की तकलीफ की दुहाई दे कर आंदोलन समाप्त करने का आग्रह करते हैं तो कभी आम आदमी के सब्र का बांध टूटने का डर दिखाते हैं। मुख्यमंत्री तो क्या खुद बैंसला भी जानते हैं कि वर्तमान में कोई चारा नहीं रह गया है। किसी और का हक मार कर तो चार प्रतिशत आरक्षण दिया नहीं जा सकता। केवल इतना संभव है कि चार प्रतिशत आरक्षण की गारंटी ले ली जाए, जो कि सरकार देने को तैयार है। बस बात इसी बिंदु पर अटकी हुई है कि सरकार पर भरोसा कैसे कर लिया जाए, उसके लिए भी कोई जिम्मेदार कांग्रेसी गुर्जर नेता गारंटी ले। कांग्रेसी इसलिए ताकि बाद में सरकार गड़बड़ करे तो उसका गिरेबान पकड़ा जा सके। सीधी सी बात है, जब सरकार के पाले में बैठे गुर्जर नेता जब अपने समाज को आंदोलन समाप्त करने की अपील कर रहे हैं तो वे ही जिम्मेदारी लें कि बाद में सरकार नहीं पलटेगी।
असल में पूरी जद्दोजहद के बाद भी रिकार्डर की सुई वहीं अटकी हुई है, जहां हाईकोर्ट के फैसले वाले दिन अटकी हुई थी। बस फर्क इतना आया है कि मंत्रीमंडल ने बैठक कर चार प्रतिशत आरक्षण को नोशनल की बजाय वास्तविक कर दिया है। न तो भर्तियां रोकी जा सकती हैं और न ही अभी पूरा पांच प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। उलझी गुत्थी के लिए चाहे पूर्ववर्ती भाजपा सरकार जिम्मेदार हो या वर्तमान कांग्रेस सरकार, आम गुर्जर तो अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। इतने कष्टप्रद आंदोलन के बाद भी स्थिति जस की तस है। कांग्रेस अब कह रही है कि भाजपा सरकार के दौरान पारित विधेयक त्रुटिपूर्ण था, इस कारण मामला उलझा, मगर उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि यदि ऐसा था तो उसने उस वक्त क्यों नहीं ध्यान इंगित किया। साफ है कि उस वक्त फच्चर डाल कर वह बुरा नहीं बनना चाहती थी। उसे पता था कि आगे जा कर मामला उलझेगा, तब यही दुहाई देंगे कि भाजपा सरकार ने विधेयक ही ऐसा पारित किया कि वह हाईकोर्ट में टिक नहीं पाया। राजनीति की इसी लड़ाई के बीच गुर्जर समाज पिस गया।
बहरहाल, भडाणा को भी बैंसला की तरह मध्यस्थ के रूप में पायलट पर भरोसा करना ही होगा। कदाचित उनकी तकलीफ ये हो सकती है कि अजमेर में पायलट के प्रभाव में ही कांग्रेसी गुर्जरों ने आंदोलन की हवा निकाल दी और दूसरी ओर पायलट ही मध्यस्थ बने हुए हैं। उनके प्रयासों से बर्फ कुछ पिघली है और उम्मीद की जा सकती है कि एक-दो दिन में रास्ता निकल आएगा।


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