सोमवार, 10 जनवरी 2011

भला क्या ताल्लुक है शाह कलंदर का सैक्स से?

हाल ही मुंबई की एक दवा निर्माता कंपनी त्रिकाल द्वारा निर्मित मैनस्ट्रोक केअर कैप्सूल नामक गर्भपात की दवा के पैकेट पर किशनगढ़ शैली की विख्यात कलाकृति बणी-ठणी का उपयोग करने पर बवाल हो गया है। असल में बणी-ठणी भगवान कृष्ण की हृदयस्वरूपा राधा है, जिससे लोगों की धामिर्क भावनाएं आहत हुई हैं। किशनगढ़ के पूर्व महाराज बृजराज सिंह सहित विश्व हिंदू परिषद जिला अध्यक्ष विपुल चतुर्वेदी, भाजपा ब्लॉक अध्यक्ष नेमीचंद जोशी व ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष हमीदा बानो ने इस पर कड़ा ऐतराज किया है। हालांकि उन सब का आपत्ति करना स्वाभाविक और उचित है, मगर सवाल ये उठता है कि क्या यह पहला मामला है, जिसमें इस प्रकार किसी देवी अथवा देवता के चित्र का उपयोग किया गया है? हमारे यहां अनेक ऐसे उत्पाद हैं, जिनमें इस प्रकार देवी-देवताओं के नाम या चित्र का उपयोग किया जाता है, मगर किसी को कोई ऐतराज नहीं होता। अगर होता भी है तो उसे नजर अंदाज कर देते हैं, किशनगढ़ वासियों की तरह सवाल नहीं उठाते।
जरा गौर करेंगे तो आपको आसानी से अपने इर्द-गिर्द ही दिख जाएगा कि तम्बाकू व खेणी के पैकेट पर गणेशजी, बीड़ी पर शंकर भगवान छपे हुए हैं। सोचनीय है कि इन मादक पदार्थों का देवी-देवताओं से क्या ताल्लुक है? आतिशबाजी के पैकेटों पर भी लक्ष्मीजी और माचिस की डिबियाओं पर किसी देवता का चित्र नजर आ जाएगा। लक्ष्मीजी का आतिशबाजी से क्या लेना-देना है? अनेक खाद्य पदार्थों के पैकेटों पर भी इसी प्रकार देवताओं के फोटो छापे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, सूफी परंपरा के महान संत शाह कलंदर के नाम पर कामशक्ति बढ़ाने वाला एक तेल बिक रहा है। बिक ही नहीं रहा, उसका प्रचार धड़ल्ले से एफएम रेडियो पर रोजाना सैकड़ों बार होता है। जिन कलंदर की लौ खुदा से लगी हुई है, उनका भला सैक्स से क्या संबंध है? हम गरीब नवाज ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के नाम का उपयोग कर चंदा उगाहने पर किसी पाकिस्तानी संस्था के बारे में तो विरोध दर्ज करवाते हैं, मगर शाह कलंदर के नाम का उपयोग कामदेव के रूप में करने पर चुप बैठे रहते हैं। यदि हमारी देवी-देवताओं के प्रति अगाध श्रद्धा है तो यह श्रद्धा उस समय कहां चली जाती है, जब ऐसे विभिन्न उत्पादों के पैकेट या पाउच उपयोग के बाद गंदगी में पड़े होते हैं। असल में हम ऊंची-ऊंची आदर्शपूर्ण बातें करने वाले और अपनी संस्कृति को दुनिया में सबसे महान बताते हुए गर्व से सीना फुलाने वाले भारतीयों की संवेदनाएं समाप्त हो गई हैं। तभी तो इस प्रकार के उत्पाद धड़ल्ले से बिक रहे हैं।
यूं धर्म के नाम पर बड़े-बड़े फसाद कर खून की नदियां बहाने वाले हम लोग अपने आपको ऐसा जताते हैं कि मानो हमसे ज्यादा धार्मिक इस दुनिया में कोई नहीं, मगर असल बात ये नजर आती है कि धर्म का उपयोग हम सप्रदायवाद के लिए करते हैं। तभी तो जिन भगवान राम के नाम पर देश की चूलें हिला देने वाले हम लोग भगवान राम और राम भक्त हनुमान के बारे में, सीताजी के बारे में बने चुटकलों के एसएमएस धड़ल्ले से एक-दूसरे को भेज कर मजा उठाते हैं। क्या वह एसएमएस आम नहीं हो गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी की पत्नी खो जाने पर जब वह भगवान राम से विनती करता है तो राम कहते हैं कि हनुमान के पास जाओ, मेरी पत्नी खोने पर भी वही ढूंढ़ कर लाया था। ऐसे ही अनेक एसएमएस हम हजम किए जा रहे हैं। क्या यह सच नहीं है कि किसी आशिकमिजाज व्यक्ति को हम बड़े सहज अंदाज में हमारे आदर्श पूर्ण योगी भगवान कृष्ण के नाम से जोड़ देते हैं? क्या यह सही नहीं है कि बदचलन औरतें द्रोपदी का नाम लेकर अपने चलन को जायज ठहराने की कोशिश करती हैं?
असल में हम दोहरी मानसिकता और दोहरे पैमानों के बीच जी रहे हैं। धर्म के प्रति हमारी आस्था बहुत ढ़ीली-ढ़ाली है। हमारे आदर्श कहने भर को हैं, उनके प्रति हमारी श्रद्धा दिखावा मात्र है। तभी तो एक ओर हम देश को आजादी दिलाने वाले राष्टपिता महात्मा गांधी की प्रतिमाएं देशभर में स्थापित करते हैं और उनकी जयंती व पुण्यतिथी मनाते हैं, दूसरी आम बोलचाल में टकला, बुड्ढ़ा और गंजा कह कर गाली देने से नहीं चूकते। जब तक हमारी प्रतिबद्धताएं इस प्रकार कांपती रहेंगी, इसी प्रकार आदर्शों और देवी-देवताओं का अपमान होता रहेगा। इसी प्रकार गर्भपात की दवाई राधा रानी के नाम से बेची जाती रहेगी।

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