गुरुवार, 10 मार्च 2011

सच बोल कर भी फंस गए शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष


एक बहुत पुरानी उक्ति है कि सच अमूमन कड़वा ही होता है। इसी कारण सच्चाई कई बार गले पड़ जाती है। यह उक्ति हाल ही राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग पर सही उतर आई। नतीजतन उन्हें अपने एक दिन पहले दिए सच्चे बयान को भी दूसरे दिन सुधारना पड़ गया। हालांकि नकल के मुद्दे पर डॉ. गर्ग ने बयान ठीक ही दिया था कि शिक्षा कर्मी ही इसके लिए जिम्मेदार हैं, मगर जैसे ही बयान छपा, उन्हें लगा कि इससे पूरे राजस्थान के शिक्षा कर्मी उबल पड़ेंगे, तो दूसरे दिन ही उन्होंने अपने बयान को सुधार लिया।
जाहिर सी बात है कि परीक्षाएं भले ही बोर्ड आयोजित करता है, लेकिन धरातल पर उसे अंजाम दिलवाने की भूमिका तो शिक्षा कर्मी ही अदा करते हैं। ऐसे में जहां भी नकल होती है, वह शिक्षा कर्मियों की लापरवाही से ही होती है। जहां सामूहिक नकल होती है, वहां तो निश्चित रूप से संबंधित स्कूल प्रबंधन दोषी होता है। इस लिहाज से डॉ. गर्ग का बयान गलत नहीं था, लेकिन जिस ढंग से बयान छपा, उससे संदेश ये गया कि पूरा शिक्षा कर्मचारी जगत ही जिम्मेदार है, जब कि वास्तव में इसके लिए कतिपय शिक्षा कर्मी ही दोषी होते हैं। डॉ. गर्ग को आभास हो गया कि उन्होंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है, वो भी तब जब कि बोर्ड की परीक्षाएं सिर पर हैं। भले ही नकल के लिए कुछ शिक्षा कर्मी जिम्मेदार हों, मगर शिक्षा कर्मियों के सहयोग के बिना बोर्ड परीक्षा आयोजित भी नहीं कर सकता। इस कारण उन्होंने दूसरे ही दिन नया बयान जारी कर कह दिया कि परीक्षाओं में नकल की प्रवृत्ति के लिये अभिभावक, विद्यार्थी, शिक्षक और समाज समान रूप से जिम्मेदार हैं। उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि बोर्ड की परीक्षाओं का आयोजन शिक्षा विभाग की संयुक्त भागीदारी के बिना संभव नहीं है। इसलिए शिक्षा विभाग और बोर्ड एक सिक्के के दो पहलू के समान एक दूसरे के पूरक हैं।

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